Cane Up यूपी-हरियाणा के गन्ना किसानों के लिए क्यों नहीं है फायदे का सौदा

Cane Up यूपी-हरियाणा के गन्ना किसानों के लिए क्यों नहीं है फायदे का सौदा

Cane Up हाल ही में केंद्र सरकार ने गन्ना किसानों के लिए एक बड़ा फैसला लेते हुए गन्ने की खरीद मूल्य में आठ फीसदी की बढ़ोतरी का ऐलान किया है। इस फैसले के तहत गन्ने की खरीद मूल्य को 315 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 340 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है, यानी गन्ने की कीमत में 25 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है। यह निर्णय पहली नजर में गन्ना किसानों के लिए राहत और खुशखबरी जैसा प्रतीत होता है, लेकिन जब हम गहराई से इस मामले का विश्लेषण करते हैं, तो यह यूपी, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड के किसानों के लिए उतना फायदेमंद साबित नहीं होता है।

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गन्ना खरीद मूल्य में वृद्धि (Cane Up)

केंद्र सरकार द्वारा गन्ना खरीद की कीमत में आठ फीसदी की बढ़ोतरी की घोषणा को किसानों के लिए एक लाभकारी कदम के रूप में देखा जा रहा है। इस वृद्धि से देशभर में गन्ना उत्पादकों को कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। लेकिन यह स्थिति उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों के गन्ना किसानों पर खास प्रभाव नहीं डालती, जहां राज्य सलाहित मूल्य (एसएपी) पहले से ही लागू है।

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एसएपी और एफआरपी के बीच अंतर: क्या है फर्क?

भारत में गन्ने की कीमतें तय करने के लिए दो मुख्य प्रणालियाँ हैं:

एफआरपी उचित एवं लाभकारी मूल्य

यह केंद्र सरकार द्वारा तय की गई न्यूनतम कीमत है, जिसे गन्ने की खरीद के लिए मिलों को किसानों को भुगतान करना होता है। एफआरपी देशभर में लागू होती है और इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी फसल के लिए एक न्यूनतम मूल्य सुनिश्चित करना है।

एसएपी (State Advised Price – राज्य सलाहित मूल्य)

एसएपी राज्यों द्वारा तय की गई वह कीमत है, जो एफआरपी से अधिक होती है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों में एसएपी की प्रणाली लागू है। इन राज्यों में गन्ना किसानों को एफआरपी से अधिक कीमत मिलती है, जिससे उनका लाभ बढ़ता है।

तालिका: एसएपी और एफआरपी की तुलना

राज्यएफआरपी (2024-25)एसएपी (2024-25)अंतर
उत्तर प्रदेश340 रुपये प्रति क्विंटल400 रुपये प्रति क्विंटल60 रुपये प्रति क्विंटल अधिक
हरियाणा340 रुपये प्रति क्विंटल380 रुपये प्रति क्विंटल40 रुपये प्रति क्विंटल अधिक
पंजाब340 रुपये प्रति क्विंटल380 रुपये प्रति क्विंटल40 रुपये प्रति क्विंटल अधिक
उत्तराखंड340 रुपये प्रति क्विंटल370 रुपये प्रति क्विंटल30 रुपये प्रति क्विंटल अधिक

जैसा कि ऊपर दी गई तालिका से स्पष्ट है, एसएपी के तहत किसानों को एफआरपी से काफी अधिक कीमत मिलती है। इसलिए, एफआरपी में 25 रुपये की बढ़ोतरी इन राज्यों के किसानों के लिए कोई बड़ा आर्थिक फायदा नहीं लाती।

यूपी-हरियाणा के किसानों के लिए क्यों नहीं है फायदेमंद? Cane Up

उत्तर प्रदेश और हरियाणा में गन्ने की खेती प्रमुख रूप से की जाती है। अकेले उत्तर प्रदेश में लगभग 45% से अधिक भूमि पर गन्ने की खेती होती है, जो इसे देश का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य बनाता है। लेकिन यहां के किसानों के लिए एफआरपी की वृद्धि से कोई खास लाभ नहीं होता, क्योंकि उन्हें एसएपी के तहत पहले से ही एफआरपी से 40-60 रुपये प्रति क्विंटल अधिक कीमत मिल रही है।

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उच्च उत्पादन लागत

यूपी और हरियाणा के किसानों की उत्पादन लागत भी काफी अधिक है। यहां किसानों को श्रम, सिंचाई, उर्वरक और कीटनाशक पर अधिक खर्च करना पड़ता है। इन लागतों को देखते हुए, 25 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि उनके खर्चों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त साबित होती है।

शुगर मिलों की देरी से भुगतान

इन राज्यों में गन्ने की खरीद के बाद शुगर मिलों द्वारा किसानों को समय पर भुगतान न मिलने की समस्या भी रहती है। हालांकि एफआरपी में वृद्धि की गई है, लेकिन यदि शुगर मिलें समय पर भुगतान नहीं करती हैं, तो इसका लाभ किसानों तक नहीं पहुंच पाता।

जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएं

यूपी और हरियाणा के किसान जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं से भी प्रभावित होते हैं। सूखा, बाढ़ और अन्य मौसमी घटनाओं के कारण उनकी फसलें अक्सर प्रभावित होती हैं। ऐसे में एफआरपी में मामूली वृद्धि उनके लिए किसी बड़ी राहत के रूप में काम नहीं कर पाती।

गन्ना उत्पादन और किसानों की समस्याएं

उच्च उत्पादन और घटता लाभ

उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में गन्ने का उत्पादन बहुत अधिक होता है, लेकिन गन्ने की बढ़ती उत्पादन लागत और घटते लाभ के चलते किसानों की वित्तीय स्थिति में सुधार नहीं हो पाता। इन राज्यों के किसानों को श्रम लागत, उर्वरक, कीटनाशक, पानी और अन्य संसाधनों पर अधिक खर्च करना पड़ता है।

शुगर मिलों की समस्या

शुगर मिलों द्वारा किसानों को समय पर भुगतान न मिलना एक बड़ी समस्या है। गन्ना किसानों की मेहनत का फल तभी मिलता है जब उन्हें समय पर उचित भुगतान किया जाए। लेकिन शुगर मिलों की वित्तीय समस्याओं के कारण किसानों को समय पर भुगतान नहीं हो पाता, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

विकल्पों की कमी

किसानों के पास गन्ना उत्पादन के अलावा अन्य विकल्पों की कमी है। गन्ना उत्पादन में निवेश और जोखिम अधिक होते हैं, लेकिन अगर सरकार किसानों को अन्य फसलों के लिए भी प्रोत्साहित करती तो वे बेहतर आय अर्जित कर सकते थे।

क्या हो सकता है समाधान?

समय पर भुगतान की व्यवस्था

सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शुगर मिलें गन्ना किसानों को समय पर भुगतान करें। इसके लिए शुगर मिलों की वित्तीय स्थिति को मजबूत करने के लिए उचित नीति बनानी चाहिए ताकि किसानों को उनके मेहनत का सही मुआवजा समय पर मिल सके।

उत्पादन लागत में कमी

किसानों को उर्वरक, कीटनाशक और अन्य संसाधनों पर सब्सिडी दी जानी चाहिए ताकि उनकी उत्पादन लागत कम हो सके। इससे उनकी आय में वृद्धि होगी और वे अधिक लाभ कमा सकेंगे।

फसल विविधीकरण को बढ़ावा

किसानों को गन्ने के अलावा अन्य फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। फसल विविधीकरण से न केवल उनकी आय बढ़ेगी, बल्कि उन्हें प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से भी बचाव मिलेगा।

सिंचाई व्यवस्था में सुधार

सरकार को सिंचाई के बेहतर साधनों पर ध्यान देना चाहिए ताकि किसानों को जल संकट का सामना न करना पड़े। ड्रिप इरीगेशन जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके पानी की बचत और बेहतर फसल उत्पादन किया जा सकता है

केंद्र सरकार द्वारा गन्ना खरीद की कीमत में आठ फीसदी की बढ़ोतरी निश्चित रूप से एक सकारात्मक कदम है, लेकिन उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के किसानों के लिए यह पर्याप्त नहीं है। इन राज्यों में एसएपी पहले से ही एफआरपी से अधिक है, इसलिए 25 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि इन किसानों की वित्तीय स्थिति में कोई बड़ा सुधार नहीं कर पाएगी। इसके अलावा, शुगर मिलों द्वारा समय पर भुगतान न मिलना, उच्च उत्पादन लागत, और प्राकृतिक आपदाओं जैसी समस्याएं भी किसानों को प्रभावित करती हैं।

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