Cane up.in हर साल की तरह इस बार भी किसानों की उम्मीदें और चीनी मिल का कर्ज एक-दूसरे से टकरा रहे हैं। चीनी मिल में पिछले साल के गन्ने का भुगतान, चाहे जितनी कोशिशें कर ली जाएं, अब तक नहीं हो सका है। और अब जब नया पेराई सत्र 6 नवंबर से चालू हो रहा है, तो किसान एक बार फिर उधारी का गन्ना देने को मजबूर होंगे। आखिर किसान और चीनी मिल एक-दूसरे के पूरक जो हैं – चीनी मिल चलेगी तभी तो किसानों के पास थोड़ा पैसा आएगा, और बिना किसानों के गन्ने के चीनी मिल की मशीनें आराम से ताश खेलती रहेंगी।
पिछले साल का बकाया और किसानों की परेशानी Cane up.in
सिंभावली चीनी मिल पर पिछले साल के किसानों के गन्ने का बकाया 132 करोड़ से भी ज्यादा हो चुका है। अब आप सोच सकते हैं, इतने पैसों में तो एक छोटी सी चीनी मिल और खुल जाए! लेकिन हकीकत यह है कि किसानों के पास इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। सरकार ने सख्त आदेश दिए हुए हैं कि किसानों को उनके गन्ने का भुगतान तुरंत किया जाए, लेकिन ऐसा लगता है कि ये आदेश बस कागजों में ही रह गए।
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भाकियू की पहल और सरकार की नजरअंदाजी
किसानों के हक की लड़ाई में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) ने भी खूब जोर लगाया। धरने दिए, रैलियां निकालीं, यहां तक कि मिल के सामने ढोल-नगाड़े भी बजाए। मगर नतीजा? सरकार की नजर बस उस ढोल की आवाज़ पर टिक गई और बकाया भुगतान की समस्या जस की तस रह गई।Cane up.in
नए सत्र की शुरुआत और किसानों की चिंता
गन्ने का नया पेराई सत्र 6 नवंबर से शुरू किया जाएगा। मिल कंट्रोलर ने निरीक्षण भी कर लिया है और तैयारियों को हिल-मिल कर परखा है। लेकिन किसानों के लिए यह नई शुरुआत भी पुराने दर्द की याद दिलाती है। “उधार का गन्ना देना ठीक वैसा ही है जैसे पेट भरा हो, मगर खाते में जीरो हो।
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अब किसानों के पास एक ही उम्मीद है कि इस बार चीनी मिल का प्रशासन उनकी मेहनत की कद्र करे और समय पर भुगतान करे। वरना ये सिलसिला यूं ही चलता रहेगा – किसान उधार देगा, मिल चलती रहेगी, और किसानों के हाथ में रह जाएगी बस एक उम्मीद की डोर।
अंत में बस इतना ही कहेंगे, किसान चाहे कितनी भी मुसीबत झेलें, उनकी मेहनत और धैर्य की मिसाल कहीं नहीं मिलेगी। काश सरकार और चीनी मिलें भी उनके इस धैर्य को समझ सकें।