Cane Up: गन्ने के साथ सहफसली खेती, लाभ, नई तकनीक और जरूरी सावधानियाँ

Cane up: गन्ने के साथ सहफसली खेती, लाभ, नई तकनीक और जरूरी सावधानियाँ

Cane up: गन्ने की खेती भारत में एक प्रमुख कृषि गतिविधि है, खासकर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों में। गन्ने की फसल में लागत और समय अधिक लगता है, क्योंकि यह फसल करीब 10 से 12 महीने में तैयार होती है। ऐसे में छोटे और मझोले किसानों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। लेकिन अगर किसान वैज्ञानिक ढंग से गन्ने की बुवाई करें और सहफसली खेती (Intercropping) को अपनाएं, तो वे अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं और आर्थिक रूप से सशक्त हो सकते हैं।

Cane up
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सहफसली खेती क्या है?

सहफसली खेती वह कृषि पद्धति है जिसमें एक मुख्य फसल के साथ दूसरी फसल उगाई जाती है। यह फसल चक्र (Crop Rotation) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, जिसमें किसान मुख्य फसल के बीच अंतराल का उपयोग करते हुए अतिरिक्त फसल उगा सकते हैं। इस पद्धति से किसान अपनी जमीन का अधिकतम उपयोग कर सकते हैं, जिससे उनकी आमदनी बढ़ती है और भूमि की उर्वरकता भी बनी रहती है।

सहफसली खेती के लाभ: Cane up

  1. आमदनी में वृद्धि: गन्ने के साथ सहफसली खेती करने से किसान को एक अतिरिक्त फसल मिलती है, जिससे वे अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
  2. खरपतवार की रोकथाम: सहफसली फसल गन्ने के पौधों के बीच की जगह को घेरती है, जिससे खरपतवार को उगने का मौका नहीं मिलता। इससे गन्ने की फसल अधिक स्वस्थ रहती है।
  3. मिट्टी की उर्वरकता में सुधार: सहफसली फसलें नाइट्रोजन और अन्य आवश्यक पोषक तत्वों को मिट्टी में जोड़ती हैं, जिससे भूमि की उर्वरकता बढ़ती है।
  4. जल प्रबंधन में सहायता: सहफसली खेती से किसान जल प्रबंधन कर सकते हैं, जिससे पानी का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित होता है।

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सहफसली खेती के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें: Cane up

  1. सहफसली के लिए ऐसी फसलों का चयन करें जो गन्ने की मुख्य फसल को प्रभावित न करें।
  2. सहफसली फसलों को ऐसे समय पर काटा जा सके जब गन्ने की फसल में वृद्धि होने लगती है।
  3. ट्रेंच विधि का उपयोग करें, जिससे गन्ने की दो लाइनों के बीच पर्याप्त जगह बनी रहे।
  4. सहफसली फसल का चयन करते समय ध्यान रखें कि वह स्थानीय जलवायु और मिट्टी के अनुसार हो।

गन्ने (Cane up)में सहफसली के लिए उपयुक्त फसलें

आलू (Potato)

गन्ने की बुवाई के साथ आलू की खेती एक उपयुक्त विकल्प है। आलू की फसल गन्ने के साथ दो महीने में तैयार हो जाती है और किसान इसे जल्दी बाजार में बेच सकते हैं। आलू की खेती से न सिर्फ अतिरिक्त आमदनी होती है बल्कि यह गन्ने के पौधों के लिए भी लाभकारी साबित होती है।

आलू (Potato)
आलू (Potato)

लहसुन (Garlic)

लहसुन की फसल गन्ने की बुवाई के साथ की जा सकती है। यह फसल भी जल्दी तैयार हो जाती है और बाजार में इसकी मांग भी अधिक होती है। किसान लहसुन की खेती से गन्ने की फसल के बीच में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

लहसुन (Garlic)
लहसुन (Garlic)

प्याज (Onion)

प्याज की खेती भी गन्ने के साथ सहफसली खेती के रूप में की जा सकती है। प्याज की फसल भी जल्दी तैयार होती है और किसान इसे बाजार में बेच सकते हैं। इससे गन्ने की फसल को कोई नुकसान नहीं होता और किसान को अतिरिक्त आमदनी मिलती है।

प्याज (Onion)
प्याज (Onion)

मटर (Peas)

मटर की फसल गन्ने की खेती के साथ करने का एक और बढ़िया विकल्प है। मटर की फसल जल्दी तैयार होती है और इससे गन्ने के पौधों को कोई नुकसान नहीं होता। मटर के पौधे गन्ने की जड़ों को मजबूती प्रदान करते हैं और मिट्टी की उर्वरकता भी बढ़ाते हैं।

मटर (Peas)
मटर (Peas)

चना (Chickpea)

चना की खेती गन्ने के साथ सहफसली खेती के रूप में की जा सकती है। चना की फसल को कम पानी की आवश्यकता होती है और यह जल्दी तैयार हो जाती है। चना की खेती से किसानों को अतिरिक्त आमदनी होती है और यह गन्ने के पौधों के लिए भी लाभकारी होती है।

चना (Chickpea)
चना (Chickpea)

सहफसली फसलों का चयन (Table: सहफसली फसलों की जानकारी)

फसल का नामबुवाई का समयकटाई का समयलाभअतिरिक्त आमदनी (प्रति हेक्टेयर)
आलूअक्टूबर-नवंबरजनवरी-फरवरीजल्दी तैयार, अधिक मांग60,000-70,000 रु.
लहसुनअक्टूबर-नवंबरफरवरी-मार्चउच्च बाजार मूल्य50,000-60,000 रु.
प्याजअक्टूबर-नवंबरफरवरी-मार्चजल्दी तैयार, बाजार में मांग40,000-50,000 रु.
मटरअक्टूबर-नवंबरजनवरी-फरवरीमिट्टी की उर्वरकता में सुधार30,000-40,000 रु.
चनाअक्टूबर-नवंबरजनवरी-फरवरीकम पानी की आवश्यकता, अधिक उत्पादन25,000-35,000 रु.

ट्रेंच विधि से गन्ने की बुवाई

गन्ने की सहफसली खेती में ट्रेंच विधि एक प्रभावी तकनीक मानी जाती है। इस विधि में गन्ने की बुवाई दो लाइनों के बीच की पर्याप्त दूरी बनाकर की जाती है, जिससे बीच की जगह में सहफसली फसलों को उगाया जा सके।

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ट्रेंच विधि की प्रमुख बातें:

  1. लाइन की दूरी: गन्ने की दो लाइनों के बीच कम से कम 90-120 सेमी की दूरी होनी चाहिए, जिससे सहफसली फसल को पर्याप्त जगह मिल सके।
  2. जल प्रबंधन: ट्रेंच विधि से बुवाई करने पर जल का प्रबंधन बेहतर होता है। पानी के सही वितरण से गन्ने और सहफसली फसल दोनों को लाभ होता है।
  3. मिट्टी का पोषण: इस विधि से मिट्टी का पोषण बेहतर होता है, जिससे फसल की गुणवत्ता बढ़ती है।
  4. खरपतवार नियंत्रण: ट्रेंच विधि में सहफसली फसल के कारण खरपतवार का विकास नहीं हो पाता, जिससे गन्ने की फसल सुरक्षित रहती है।

सहफसली खेती के दौरान ध्यान रखने योग्य सावधानियाँ (Cane up)

  1. फसल चक्र का ध्यान रखें: सहफसली फसलों का चयन करते समय यह सुनिश्चित करें कि वे गन्ने की फसल को नुकसान न पहुंचाएं। फसल चक्र को ध्यान में रखते हुए ही सहफसली खेती करें।
  2. जल प्रबंधन: सहफसली खेती में जल प्रबंधन का ध्यान रखें। दोनों फसलों की पानी की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सिंचाई करें।
  3. रोग और कीट नियंत्रण: सहफसली फसलों के साथ गन्ने की फसल पर रोग और कीटों का आक्रमण हो सकता है। इसीलिए समय-समय पर फसल की जांच करते रहें और उचित कीटनाशक का उपयोग करें।
  4. समय पर कटाई: सहफसली फसलों की कटाई समय पर करें, ताकि वे गन्ने की फसल को प्रभावित न करें। फरवरी और मार्च के पहले सहफसली फसलों की कटाई कर लें, क्योंकि उस समय गन्ने की फसल में कल्ले (Shoot) निकलने लगते हैं।

गन्ने के साथ सहफसली खेती किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प है। इससे न केवल उनकी आय में वृद्धि होती है बल्कि गन्ने की फसल की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। ट्रेंच विधि से गन्ने की बुवाई और सहफसली फसलों का सही चयन किसानों को आर्थिक मजबूती प्रदान करता है।

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