Cane News: किसानों को 450 रुपये प्रति क्विंटल गन्ने का न्यूनतम मूल्य दे सरकार, मोर्चा की मांग

Cane News: किसानों को 450 रुपये प्रति क्विंटल गन्ने का न्यूनतम मूल्य दे सरकार, मोर्चा की मांग

Cane Newsसंयुक्त किसान मोर्चा पलवल की समीक्षा बैठक शनिवार को किसान नेता मास्टर महेंद्र सिंह चौहान की अध्यक्षता में संपन्न हुई। इस बैठक में प्रमुख रूप से गन्ना किसानों की समस्याओं पर चर्चा की गई और सरकार से 450 रुपये प्रति क्विंटल गन्ने का भाव देने की मांग की गई। इसके अलावा, किसानों ने चीनी मिलों को समय पर चालू कराने और अन्य संबंधित मुद्दों पर जोर दिया।

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गन्ना किसानों की समस्याएं और मांगें(Cane News)

गन्ना किसान लंबे समय से उचित मूल्य न मिलने के कारण परेशान हैं। इस समस्या को हल करने के लिए किसानों ने कई बार आंदोलन किए हैं। वर्तमान में, किसानों की मांग है कि उन्हें गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 450 रुपये प्रति क्विंटल मिलना चाहिए ताकि वे अपनी लागत निकाल सकें और लाभ कमा सकें।

गन्ने की खेती से जुड़ी समस्याएं
  1. उच्च उत्पादन लागत: उर्वरक, बीज, पानी, और मजदूरी की बढ़ती लागत के कारण गन्ना उत्पादन महंगा होता जा रहा है। किसान उचित मूल्य न मिलने के कारण अपनी लागत भी नहीं निकाल पाते।
  2. चीनी मिलों का देरी से चालू होना: चीनी मिलों का समय पर चालू न होना किसानों के लिए बड़ी समस्या है। मिल के देर से चालू होने के कारण किसानों को फसल बेचने में देरी होती है, जिससे उन्हें वित्तीय नुकसान होता है।
  3. समय पर भुगतान न होना: किसानों को अक्सर चीनी मिलों से समय पर भुगतान नहीं मिलता, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो जाती है। यह समस्या छोटे और मध्यम किसानों के लिए अधिक गंभीर है।

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गन्ने की कीमत में बढ़ोतरी की मांग (Cane News)

गन्ना किसानों की मांग है कि उन्हें 450 रुपये प्रति क्विंटल का समर्थन मूल्य मिले। इस मांग के पीछे मुख्य तर्क यह है कि पिछले कुछ वर्षों में खेती की लागत में काफी वृद्धि हुई है, लेकिन गन्ने की कीमतें उतनी नहीं बढ़ी हैं। यदि सरकार किसानों को इस मूल्य पर गन्ना बेचने का मौका देती है, तो इससे उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार होगा और वे अपनी लागत भी कवर कर पाएंगे।

वर्षगन्ने का भाव (रुपये/क्विंटल)किसान आंदोलन की तिथियां
2018315मार्च 2018
2019325अगस्त 2019
2020340फरवरी 2020
2021350जनवरी 2021
2022370दिसंबर 2022
2023 (मांग)450अक्टूबर 2023

चीनी मिलों की स्थिति और समय पर संचालन की मांग

बैठक में किसान नेताओं ने चीनी मिलों की खराब स्थिति और समय पर मरम्मत न होने के मुद्दे पर गहन चर्चा की। किसानों का कहना है कि मिल की मरम्मत कार्य समय पर नहीं होने के कारण प्रतिवर्ष मिल को चालू कराने के लिए उन्हें आंदोलन करना पड़ता है।

चीनी मिलों की खराब स्थिति

चीनी मिलें, विशेषकर सहकारी चीनी मिलें, अपनी खराब प्रबंधन और देरी से मरम्मत कार्य के कारण समय पर चालू नहीं हो पातीं। इससे न केवल किसानों को नुकसान होता है, बल्कि मिलों के कर्मचारियों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

  1. मरम्मत कार्य में देरी: मिल की मशीनों की मरम्मत समय पर न होने के कारण, फसल कटाई के बाद किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए इंतजार करना पड़ता है।(Cane News)
  2. प्रबंध निदेशक से बैठक: किसानों ने अपनी मांगों को लेकर चीनी मिल के प्रबंध निदेशक से मुलाकात की और उन्हें ज्ञापन सौंपा। प्रबंध निदेशक ने 15 नवंबर तक मिल चालू करने का आश्वासन दिया है, लेकिन यदि मिल समय पर चालू नहीं हुई, तो किसानों को फिर से आंदोलन करने की चेतावनी दी गई है।
आंदोलन की चेतावनी

यदि सरकार और चीनी मिल प्रबंधन समय पर कदम नहीं उठाते, तो किसानों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। किसानों ने पहले भी समय पर मिल चालू कराने और उचित भुगतान के लिए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए हैं, और इस बार भी उनकी योजना यही है।

गन्ना मूल्य निर्धारण में सरकार की भूमिका

गन्ने का मूल्य निर्धारण राज्य सरकार और केंद्रीय कृषि मंत्रालय के माध्यम से किया जाता है। किसानों की मांग है कि राज्य सरकार इस बार उनकी मांगों पर ध्यान दे और जल्द से जल्द 450 रुपये प्रति क्विंटल का मूल्य तय करे।

मूल्य निर्धारण प्रक्रिया

गन्ने की कीमत तय करने की प्रक्रिया में कई कारक शामिल होते हैं, जिनमें उत्पादन लागत, मांग और आपूर्ति, चीनी मिलों की क्षमता, और सरकार की नीतियां शामिल हैं। हालांकि, किसानों का कहना है कि इन कारकों के बावजूद उन्हें जो मूल्य मिलता है, वह उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होता।

  1. उत्पादन लागत में वृद्धि: पिछले कुछ वर्षों में उर्वरक, बीज, और अन्य कृषि इनपुट्स की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है, जिससे किसानों की लागत बढ़ गई है। ऐसे में गन्ने की कीमत बढ़ाना आवश्यक हो गया है।
  2. सरकार की नीतियां: सरकार की नीति किसानों की मदद करने के उद्देश्य से होती हैं, लेकिन उनका कार्यान्वयन अक्सर धीमा होता है, जिससे किसानों को फायदा नहीं मिल पाता।

सरकार से अपेक्षाएं

गन्ना किसानों की सरकार से मुख्य अपेक्षाएं इस प्रकार हैं:

  1. 450 रुपये प्रति क्विंटल का भाव: किसानों की मांग है कि सरकार गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य 450 रुपये प्रति क्विंटल तय करे ताकि उन्हें सही मुआवजा मिल सके।
  2. समय पर मिल चालू कराना: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी चीनी मिलें समय पर चालू हों ताकि किसानों को अपनी फसल बेचने में देरी न हो।
  3. समय पर भुगतान: किसानों को समय पर भुगतान मिलना चाहिए ताकि वे अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा कर सकें।

गन्ना खेती का भविष्य और किसान आंदोलनों का प्रभाव

गन्ना किसानों के आंदोलनों का इतिहास बताता है कि जब भी सरकार ने उनकी मांगों को नजरअंदाज किया है, किसानों ने व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन किए हैं। हालांकि, इन आंदोलनों का असर दिखा है और कई बार सरकार ने उनकी मांगें मानी हैं।

पिछले आंदोलनों का प्रभाव

गन्ना किसानों के पिछले आंदोलनों ने सरकार को उनकी मांगों पर ध्यान देने के लिए मजबूर किया है। उदाहरण के लिए, 2018 में हुए एक बड़े आंदोलन के बाद सरकार ने गन्ने की कीमतों में मामूली वृद्धि की थी। हालांकि, किसानों का कहना है कि यह वृद्धि पर्याप्त नहीं थी और उन्हें अभी भी बेहतर कीमत की जरूरत है।

भविष्य की योजनाएं

अगर इस बार सरकार ने किसानों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया, तो वे एक बार फिर बड़े पैमाने पर आंदोलन करने की योजना बना रहे हैं। किसानों का कहना है कि वे अपनी मांगों को लेकर दृढ़ हैं और उन्हें 450 रुपये प्रति क्विंटल से कम पर समझौता नहीं होगा।

गन्ना किसानों की मांगें जायज हैं और उन्हें सरकार का समर्थन मिलना चाहिए। चीनी मिलों का समय पर संचालन और गन्ने की सही कीमत किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए महत्वपूर्ण हैं। सरकार को किसानों की मांगों को ध्यान में रखते हुए त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए ताकि वे अपनी फसल का सही मुआवजा प्राप्त कर सकें और उनकी आजीविका सुरक्षित रह सके। यदि सरकार इन मांगों को पूरा नहीं करती, तो गन्ना किसान एक बार फिर आंदोलन की राह पर जा सकते हैं, जिससे कृषि क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ेगी।

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